प्रथम दिन-
माँ शैलपुत्री की पूजा
इस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है, जो पर्वतों की पुत्री और शक्ति का प्रतीक हैं। यह दिन मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति का अवसर है।
द्वितीय दिन -
माँ ब्राह्मचारिणी की पूजा
माँ ब्राह्मचारिणी की पूजा से साधना और तपस्या का महत्व समझ में आता है। यह दिन आत्मनिर्भरता और संयम की प्राप्ति का है।
तृतीय दिन
माँ चंद्रघंटा की पूजा
माँ चंद्रघंटा के रूप में पूजा से मानसिक शांति और साहस की प्राप्ति होती है। यह दिन नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक है।
चतुर्थ दिन -
माँ कूष्मांडा की पूजा
माँ कूष्मांडा को ब्रह्मांड की रचनाकार माना जाता है। यह दिन ऊर्जा और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
पंचम दिन -
माँ स्कंदमाता की पूजा
माँ स्कंदमाता की पूजा से संतानों की सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना की जाती है। यह रूप मातृत्व और संरक्षण का प्रतीक है।
षष्ठम दिन
माँ कात्यायनी की पूजा
– माँ कात्यायनी की पूजा से राक्षसों और विघ्नों से मुक्ति मिलती है। यह दिन शक्ति और साहस की प्राप्ति का है। –
सप्तम दिन -
माँ कालरात्रि की पूजा
माँ कालरात्रि का रूप अंधकार से उजाले की ओर मार्गदर्शन करता है। यह दिन बुराई और डर से मुक्ति की कामना का है।
अष्टम दिन -
माँ महागौरी की पूजा
माँ कालरात्रि का रूप अंधकार से उजाले की ओर मार्गदर्शन करता है। यह दिन बुराई और डर से मुक्ति की कामना का है।
नवमी दिन -
माँ सिद्धिदात्री की पूजा
माँ सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों की दात्री हैं। इस दिन सफलता, समृद्धि और सिद्धियों की प्राप्ति का अवसर है।
इन नौ दिनों में हर रूप देवी के अलग-अलग गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं, जो जीवन में ऊर्जा, सुख, समृद्धि और शक्ति का संचार करते हैं।